अवैध नहीं स्वैच्छिक ” देह व्यापार “

जो भी व्यक्ति अपनी शैक्षणिक और बौद्धिक कुशलता का प्रयोग करके पैसे कमाता है उसे ‘पेशेवर’ कहा जाता है। लेकिन यही परिभाषा समाज के उस वर्ग के लिए भिन्न है जो अपनी दैहिक कुशलता का प्रयोग करके अपना जीवनयापन करते हैं। उनके इस काम को अक्सर ‘ देह व्यापार’ या फिर ‘धंधा’ कहा जाता है। उनका ये काम पेशेवर की श्रेणी में नहीं आता। ऐसा माना जाता है की देहव्यापार मजबूरी में या फिर निर्धनता के कारण किया जाता है। इसलिए इन्हें समाज द्वारा हेय दृष्टि से देखा जाता है। 

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में कोलकाता में एक ‘ सेक्स वर्कर’ के संबंध में दर्ज की गई शिकायत पर संज्ञान लेते हुए कहा है की इसे भी पेशे के रूप में देखा जाए। साथ ही जो वयस्क अपनी मर्जी से इस पेशे में है पुलिस द्वारा न ही उन पर मुकदमा किया जाए न ही उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाए। क्योंकि किसी भी पेशे के बावजूद इस देश के प्रत्येक व्यक्ति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार है।” 

पिछले कई वर्षों से पुलिस प्रशासन द्वारा छापेमारी करके इन लोगों पर कार्यवाही की जाती रही है। हालांकि कई मामलों में पुलिस की कार्यवाही से लड़कियों को बचाया भी गया है। किंतु कुछ सेक्स वर्कर्स का कहना है की वह वयस्क हैं और अपनी स्वेच्छा से इस पेशे में है। उन्हें भी अन्य लोगों की तरह जीवन जीने और पेशा करके पैसे कमाने का अधिकार है। सेक्स वर्कर्स के अधिकारों की रक्षा करते हुए कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि स्वैच्छिक वेश्यावृत्ति अवैध नहीं है। केवल वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायत दर्ज कराने वाली सेक्स वर्करों के साथ पुलिस भेदभाव न करे। उनके मामलों में संवदेनशील रवैया अपनाए। 

एक, दो, तीन पटेल नियम लागू



पटेल को लेकर मेरी एक कहावत है, जहां न पहुंचे तेल वहां पहुंचे पटेल। ऐसा क्यों वो आगे भौकेंगे हम। क्योंकि पटेल के लिए हम पांचों पालतू कुत्ते की तरह है जिन्हें उसे तीन साल पालना था। ऐसा वो हमेशा भौंकती थी। और उसके मुताबिक हम लोग उसे कुछ बता रहे हैं तो मतलब हम लोग भौंक रहे हैं। ऐसा उसका भौंकना था। तो चलिए उसके बारे में जोर से भौंकते हैं…

बिल्कुल पटेल एक दम तेल की तरह थी। घाट अस्सी की एक ठाठ बनारसी लड़की पता नहीं कहां से अपनी किस्मत डुबवाने गंगा का किनारा छोड़कर गंगा की मझधार में आ गिरी थी। विज्ञान के मुताबिक तेल की बूंद पानी में गिरती है लेकिन कभी पानी में मिलती नहीं। ये बूंद भी गिरी हम पानियों के बर्तन में। अलग थलग सी तैरती रहती थी कभी उस कोने, कभी इस कोने, कभी बीच में हिचकोले खाती, बलखाती पर पता नहीं कौन से ताव में कि पानी में नहीं मिलना । लेकिन हम लोग भी थे पानी वो भी h2o वाले नहीं हरा + आमी वाले। मिला लिया उस अलग थलग तेल की बूंद को हम हरामपन वाले पानीयों में और वो तेल की बूंद और पानी मिलाकर बन गया “पटेल”। जो हमसे पत्रकारिता ख़त्म होते होते चौगुनी हरामी हो चुकी थी।

पटेल के ऐसे कोई लिखित नियम तो नहीं थे लेकिन कभी – कभी वो ऐसे ही भौंक देती थी। तो उसकी तसल्ली के लिए मैंने उनको नियम बोल दिया बस। हम लोगों की बकवास भौंक को बंद करने के लिए वो बीच – बीच में अपना ज्ञान भौंक देती थी…. “एक,दो, तीन पटेल नियम लागू”। और हम लोग उसकी इस भौंक को सुनकर हसी के मारे अपनी बकवास भौंकना बंद कर देते थे। बस मूछें नहीं थीं पटेल की वरना कसम बेर की… एक, दो, तीन पटेल नियम लागू भौंकते हुए अपनी मूछों को ताव जरूर देती वो। अपने नाम और अपने शहर पर बड़ा गुरूर था उसे।

पत्रकारिता में दो साल अपनी कलम घिसने के बाद पटेल एक बात समझ गई थी और हम लोगों को भी समझाती थी…… कि “मेरे लाल ! जिंदगी में तुम्हें जहां से खुशियां मिले वहां से बटोर लो। क्योंकि इस दुनिया में किसी को किसी की कोई चिंता नहीं सब अपनी अपनी मस्ती में मस्त हैं।” और उसके इस बटोरने वाले ज्ञान का पालन ग्रुप के ठाकुर साहब और हमने भी किया था। जिसका उल्लेख हम छहों के अलावा कहीं और करना वर्जित था।

पटेल का एक और नियम था लोगों को बेवजह चने कि झाड़ पर चढ़ाना। और इसके लिए वो अपने मोहक, मधुर शब्दावलियों का इस्तेमाल करती थी। सामने वाला उसके मोहक तीर से घायल हुए बिना रह ही नहीं सकता था।उसकी एक और आदत थी अंग्रेजी में झूठ बोलना। कहने का मतलब था कि जब उसे किसी एरे गैरे की तारीफ करनी होती थी तो वो अपने हिंदी और उर्दू के अनमोल लफ्जों को बर्बाद करने की जगह अंग्रेजी का गुच्छा फेंक कर मारती थी।


एग्जाम के टाइम पर मूवी, वेब सीरीज देखना, असाइनमेंट को हल्के में लेना, ये भी कुछ नियम उसने बना लिए थे।


नोट :- पटेल के बताए नियमों का पालन अपनी रिस्क पर करें क्योंकि पटेल का काम है ज्ञान भौंकना सो वो भौंक देती है।

एक दो तीन पटेल नियम लागू

~आयुषी शाक्य

कड़वी दवाई…

पीहू को दो हफ्ते ही हुए थे एम्स में डायटिशियन की जॉब करते हुए। पहले महीने में उसकी ड्यूटी ट्रामा सेंटर में लगाई गई थी। जहां उसे कैंसर के मरीजों की डाइट प्लान करने और रेगुलर मेडिसन रिपोर्ट लेने के लिए रखा गया था। उसे ट्रॉमा सेंटर के वार्ड 415 से किसी बच्चे की चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी। जो शायद दवाई लेने से मना कर रहा था। वह आवाज़ सात साल के मिक्कू की थी जो कैंसर की थर्ड स्टेज पर था। उसे देखकर पीहू का मन बहुत दुःखी हो गया था। उसने सोचा नहीं था कि इतने छोटे से बच्चे को भी इतनी बड़ी बीमारी हो सकती है।

अब पीहू को भी दूसरे डॉक्टरों के साथ मिलकर मिक्कू को दवाई खिलाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती थी। पीहू चाहती थी कि मिक्कू पूरी तरह से ठीक हो जाए और अपनी दवाई समय पर ले। वह उससे कहती दवाई नहीं खाओगे तो ठीक कैसे होगे? मिक्कू ने भोलेपन से कहा, “डाइटिंग वाली डॉक्टर! मैं भी जल्दी ठीक होना चाहता हूं, लेकिन ये दवाई बहुत ही कड़वी हैं। मैं कैसे इन्हे खाऊं?”

डॉक्टर्स ने उसे कुछ भी मीठा खाने से मना किया था। पीहू ने कहा आज खा लो। कल मैं डॉक्टर से बात करके तुम्हें कुछ मीठा खिलाने की परमिशन लेती हूं। उससे मीठा खिलाने का वादा करके उसने मिक्कू को दवाई खिला दी।

एक दिन वार्ड की ओर जाते हुए पीहू को कोई शोर नहीं सुनाई दिया। उसे लगा आज मिक्कू ने दवाई खा ली है लगता। लेकिन जब वह अंदर गई तो बेड खाली था। उसने नर्स से पूछा कि वो बच्चा कहां गया? नर्स ने मुस्कुराते हुए कहा,मैडम आपको नहीं पता “वो तो मर गया!” और बड़ी बेफिक्री से चली गई। पीहू , नर्स की इस बात से हैरान थी कि उसने कितनी आसानी से मुस्कुराते हुए कह दिया, “वो तो मर गया!”

वो सोच ही रही थी तभी नर्स ने कहा, “मैम इस हॉस्पिटल में हजारों लोग इलाज कराने आते हैं और जरूरी नहीं सब ठीक होकर ही जाए। कुछ की जिंदगी यहीं से खत्म हो जाती है। रोज कोई न कोई मरता है इसलिए हम सबकी अब आदत सी हो गई है। हम हर किसी के लिए दुःखी नहीं हो सकते। अगर हम किसी एक की मौत पर दुःखी हो जाएंगे तो बाकी लोगों की जान कैसे बचाएंगे?”

पीहू नर्स की बात समझ जरूर गई थी।लेकिन वह अपने आपसे सवाल भी कर रही थी क्या वह भी ऐसे ही हो जाएगी? जो घर में किसी के छोटी सी चोट लगने पर पूरा घर सर पर उठा लेती है और हजारों हिदायतें देना शुरू कर देती है।वो भी किसी के मरने पर ऐसे ही मुस्कुराकर भूल जाएगी? उसने मिक्कू की कड़वी दवाईयों की ओर देखा और फिर पास वाले मरीज का डाइट चार्ट देखने लगी…..

आयुषी शाक्य

ननिहाल….

बाबा के घर से ज्यादा जहां खेली हूं,
अगर अनामिका थी बाबा की तो गुड़िया हूं नाना की।

नाना के घर रोका टोकी का डर थोड़ा था,
जहां चढ़कर पेड़ पर अमिया और जामुन को तोड़ा था।

और खाए थे पके शहतूत ,खट्टे करोदें,
जहां बनाए थे गुड्डे गुड़ियों के लिए मिट्टी के घरोदें।

किया था पार जहां नहर को,
जहां सुबह होती थी दोपहर को।

-आयुषी

Pc:- me

An evening princess

Sunrays gave me her tiara and said you are the princess of this evening.

मैंने उससे पूछा कि तुमने मुझे केवल शाम की राजकुमारी क्यों बनाया ? ये तो बहुत छोटा समय है। सुबह का बना देती या दिन की या फिर रात की…. ये सब कितने लंबे होते हैं।

उसने कहा कि मैंने तुम्हें इसलिए शाम की राजकुमारी बनाया है क्योंकि शाम छोटी जरूर होती है। लेकिन सुबह ,दिन और रात से ज्यादा खूबसूरत होती है। इस समय सूरज अपनी किरणें समेटता है तो चांद अपनी चांदनी बिखेरने के लिए उत्सुक रहता है। पंछी जहां घर को लौटते हैं वहीं तारे आकाश के आंगन में टिमटिमाने लगते हैं। कोयल कूकना बंद कर देती है वहीं झींगुर अपने पंखों से ध्वनि करने लगते हैं। और इस समय लोग ज्यादा क्रियाशील होते है ना तो लोग सुबह की तरह अधजगे होते हैं , ना दिन की तरह अलसाए और ना रात की तरह पूर्ण निद्रा में होते हैं। इस समय लोग दिन के कामों को समाप्त और रात के कामों को प्रारंभ करते हैं। अर्थात लोगों का मस्तिष्क क्रिया कर रहा होता है। लोग दिन के कोलाहल और रात की शांति के बीच…. शाम की ध्वनिकता का आनंद लेते हैं।

मैंने कहा लेकिन ये सब तो सुबह के समय भी होता है? बस तब सूरज निकलता है और चांद चिप जाता है। पंछी कलरव करते हैं तो तारे बादलों में छिप जाते हैं। फिर शाम सुबह से अलग क्यों?

उन्होंने कहा कि बेशक शाम और सुबह में एक जैसी क्रियाएं होती हैं। लेकिन तुम्हीं ने तो बताया कि सुबह लंबी होती है और शाम छोटी। तो तुम्हीं बताओ कौन ज्यादा खूबसूरत है। शाम या सुबह ? बेशक शाम, लेकिन क्यों मैंने फिर पूछा उन्होंने कहा कि शाम के छोटे से समयांतराल में ही कितने सारे सुंदर बदलाव होते हैं। तो तुम भी शाम की तरह छोटे से ही समयांतराल में कुछ अच्छा करने की सोचो । क्योंकि तुम कर सकती हो। कुछ बहुत बढ़िया।

Ayushi shakya

सोशल मीडिया को पूरी आजादी लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकती है। ( समाचारों के सम्बन्ध में)

इसमें कोई दोराय नहीं है कि सोशल मीडिया बहस का क्षेत्र भी है और बहस का विषय भी। बहस का क्षेत्र इसलिए क्योंकि लोग आए दिन सोशल मीडिया पर टीका टिप्पणी की नीली चिड़िया उड़ाते रहते हैं। जहां एक ने कुछ कहा नहीं सोशल मीडिया पर हैशटैग की बरसात हो जाती है। इस बार बहस के विषय में इसलिए है कि क्या सोशल मीडिया को समाचारों के प्रसारण की पूर्ण आजादी दी जानी चाहिए या नहीं? अगर समाचारों के प्रसारण को लेकर बात हो रही है तो इसे मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी से जोड़ना गलत नहीं होगा।

आख़िर इस बात पर बहस क्यों ? क्योंकि इस लोकतंत्र में स्वतंत्रता के बाद भी ना तो किसी को पूरी आजादी मिली है और शायद ही आगे आने वाले समय में मिलेगी। यहां किसी को स्वतंत्रता भी नियंत्रण के साथ ही दी जाती है। ताकि कोई इसका दुरपयोग ना कर सके।

लोकतंत्र के शासन की बागडोर ( रस्सी) जनता के प्रतिनिधि के हाथों में है। जनता का यह प्रतिनिधि मदारी है जो जनता को जम्हुरे की भांति अपने इशारों पर नाचता है। ” यानी जम्हुरा नाच तो सकता है लेकिन उसे कमर कब मटकाना है कब उछलना है। ये मदारी ही बताता है।” वह कभी जम्हुरे को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं देता। ठीक इसी प्रकार जब ये प्रतिनिधि चाहेगा तब जनता बोलेगी और उसके समर्थन में चिल्लाएगी। क्योंकि अगर इसे स्वतंत्रता मिल गई तो कोई उसकी बात नहीं मानेगा और ना ही कोई उसकी बड़ाई करेगा।

इस लोकतंत्र में होता भी यही है जो उस सत्ताधारी की बड़ाई नहीं करता उसे या तो लालच देकर प्रशंसा करवाई जाती है और यदि वो इसके बाद भी ना करे तो उसे इस दुनिया से ही स्वतंत्र कर दिया जाता है। जहां एक ओर इसी लोकतंत्र के संविधान में मीडिया को अनुच्छेद 19(1) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है वहीं दूसरी ओर कलबुर्गी, नरेंद्र दाभोलकर , गोविंद पनासरे , गौरी लंकेश पत्रकारिता की दुनिया के ऐसे नाम हैं जिन्हें उनकी स्वतंत्र अभिव्यक्ति के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी। क्योंकि शायद इनकी अभिव्यक्ति सत्ताधारी के विरूद्ध थी। क्योंकि ये उसकी प्रशंसा में नहीं अपितु उनके विरोध में आवाज़ उठा रहे थे। वो कुछ ऐसा बता रहे थे जिससे इनका बना बनाया काम बिगड़ सकता था। नि:संदेह बड़े – बड़े घोटाले, भ्रष्टाचार और तस्करी के मामलों को छिपाने वाले सत्ताधारियों ने इनकी हत्या का सच भी छिपा दिया।

आज भी इन तख्तदारों को यही भय है अगर उसने मीडिया को पूर्ण स्वतंत्र कर दिया तो ये चिल्ला चिल्लाकर पूरी दुनिया को उनकी राजनीति का काला सच बता देंगे। ये भ्रष्ट राजनीति करने वाले बहुत अच्छे से जानते हैं कि जब इन पत्रकारों ने कलम के बल पर ही इनका इतना विरोध किया तो सोशल मीडिया जैसा तेज धार वाला हथियार लेकर क्या करेंगे? वो तो इनकी राजनीति का तख्त ही हिला कर रख देगें।

अगर मीडिया को स्वतंत्रता मिल भी गई तो ये सत्ताधारी उन्हें लाभ देकर या अपना ये अहसान जताकर ‘ की उन्होंने मीडिया को पूर्ण स्वतंत्र कर दिया है’ अपनी प्रशंसा का ढोल बजाने को कहेंगे। क्योंकि इनका काम ही है काम करके अहसान जताना। और मीडिया भी सत्ताधारी के अहसान तले दबकर उसकी बोली ही बोलेगी, उसके राग ही अलापेगी। ऐसी स्वतंत्रता का कोई लाभ नहीं जिसमें मीडिया अपने विचारों को ही ना रख पाए। क्योंकि मीडिया का कार्य है सच को सामने लाना। लेकिन लोकतंत्र का कटु सत्य ही यही है कि मीडिया को कितनी ही स्वतंत्र क्यों ना मिली हो लेकिन इन सत्ताधारियों के आगे सब मजबूर हैं। मीडिया भी जानता है कि जो भी स्वतंत्र होकर सच बोलने का प्रयत्न करेगा उसका भी वही हाल होगा जो कलबर्गी ,गौरी, दाभोलकर और गोविंद पनासरे का हुआ। पत्रकारिता की दुनिया में ये कोई पहली बार नहीं की जब पत्रकारों की आवाज को दबने का प्रयत्न किया गया हो। इससे पहले अपातकाल के दौरान इंदिरा सरकार ने पत्रकारों की आवाज को दबाने का प्रयास किया था।

ये सत्ताधारी कभी नहीं चाहेंगे कि उनका काला सच लोंगो के सामने आए। इसीलिए वे मीडिया की पूर्ण स्वतंत्रता का विरोध करेंगे ही। और हममें से कुछ लोग भी विरोध करेंगे क्योंकि हम मानते हैं कि मीडिया, सोशल मीडिया के द्वारा फेक न्यूज को फैलाती है। और ये काफी हद तक सही भी है।ये कार्य उन्हीं मीडिया हाउस द्वारा किया जाता है जो सरकार की चापलूसी करते हैं। और सच दिखाने की जगह झूठी खबरें फैलाते हैं। लेकिन अगर हमें सत्ताधारियों का सच जानना है तो मीडिया को स्वतंत्र करने की आवश्यकता है।

हमें यहां सत्ताधारियों से सवाल करना चाहिए की अगर वह मीडिया को स्वतंत्रता दे देते हैं तो क्या वो अपने विरूद्ध सच सुन पायेंगे? क्या वे ये वादा कर पाएंगे कि अब किसी और कलबर्गी, दाभोलकर ,गौरी लंकेश और गोविंद पनासरे की हत्या नहीं होगी? अगर वे ये वादा करते हैं तो मीडिया को स्वतंत्रता अवश्य मिलनी चाहिए। क्योंकि हम सब को ऐसी सरकार के बारे में जानने का पूरा अधिकार है जिसे हम चुनते है।

-आयुषी शाक्य

रूल्स फॉर रिलेशनशिप

जोड़ियां बेशक ऊपर वाला बनाता है। लेकिन उस रिश्ते को निभाने के तरीके हम बनाते हैं। कोई कहता रिश्ता दिल से निभाया जाता है तो कोई कहता है त्याग से। कोई कहता है जब जिम्मेदारियों की धूप मिलती है तो रिश्ते की जड़ें अपने आप मजबूत हो जाती हैं। सब अपने अपने अनुभव से कुछ ना कुछ कहते हैं। लेकिन रिश्ता निभाते वक्त सात फेरों के साथ इन सात नियमों को भी अपना लिया जाए तो आपके रिश्ते की गाड़ी बिना रुकावट चलेगी।

बीते कल से नहीं होगा वास्ता
हर किसी को अपने पार्टनर के बारे में सबकुछ जानने का हक होता है। क्योंकि तभी एक सच्चे रिश्ते की नींव रखी जा सकती है। अपने पार्टनर के बीते कल के बारे में जाने जरूर लेकिन लड़ाई या झगड़े के दौरान उन्हें बीती बातों की उलाहना ना दें। इससे रिश्ते और खराब हो सकते हैं। क्योंकि बीती बातें और यादें दोनों ही हमेशा खराब होती हैं।

हम एक – दूसरे की इज्जत करेगें
हमें किसी के साथ तभी अच्छा लगता है जब वो हमें सम्मान दे, हमारी छोटी- छोटी बातों का ध्यान रखे। तो आपको भी वही करना है। एक – दूसरे की पसंद – नापसंद, खूबियों का ख्याल रखना है । और एक दूसरे के काम और फैसलों का सम्मान करना है। अपने पार्टनर में कमियों की जगह खूबियों को देखना और हमेशा एक दूसरे को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना।

हम शिकायतों से दूरी रखेंगे
तुमने मेरी तारीफ नहीं की, तुम मेरी प्रॉब्लम नहीं सुनते, तुम कभी मेरी साइड नहीं लेते… ऐसी बहुत से शिकायतें हैं जो आपको अपने पार्टनर से होती है। लेकिन ये भी सच है कि आपके पार्टनर ने आपकी तारीफ भी की होगी और आपकी परेशानी भी समझी होगी। शायद उसकी कोशिशें आपकी उम्मीद पर खरी ना उतरी हों। तो बेहतर होगा उनसे शिकायत करने से अच्छा उनके प्रयास को महसूस किया जाए।

हम एक – दूसरे को नहीं कोसेंगे
गुस्सा हर किसी को आता है। पर इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं आप गुस्से में कुछ कहने लग जाए और एक दूसरे को कोसने लगे। क्योंकि गुस्से में कही गई बात आपके पार्टनर के दिल में बैठ सकती है। फिर आपके माफी मांगने और शर्मिंदा होने से भी वो कड़वाहट नहीं खत्म हो सकती। इसलिए कभी भी किसी गलती या नुकसान को लेकर अपने पार्टनर को बुरा भला ना कहें।

हर झगड़े को दिन के अंत तक खत्म कर लेंगे -अगर किसी बात को लेकर आप दोनों की लड़ाई चल रही हो तो रात में सोने जाने से पहले हर तनाव को खत्म करने की कोशिश करें। फिर समस्या जटिल ही क्यों ना हो। भले ही अस्थाई समाधान ही क्यों ना निकले उसे अपनाएंगे। क्योंकि ऐसा न करने पर ना आप चैन से पायेंगे ना ही आपका पार्टनर और आप दोनों में तनाव का स्तर बढ़ जाएगा । जिससे आपकी कार्यक्षमता पर भी असर पड़ेगा।

जब होंगे साथ में, फोन नहीं होगा हाथ में
अगर आप अपने पार्टनर के साथ काम समय के बावजूद अच्छा समय बिताना चाहते हैं तो फोन से थोड़ी दूरी बना कर रखें। और थोड़ी एक – दूसरे की दिनचर्या के बारे में बात करें। आपकी इस आदत का असर आपके पार्टनर पर भी पड़ेगा। क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि जरूरत ना होते हुए भी हम फोन कि स्क्रीन से चिपके रहते हैं। और अपने रिश्ते की मिठास खो देते हैं।

बातचीत नहीं करेंगे बंद
अगर आप दोनों में किसी बात को लेकर झगड़ा हो रहा है तो किसी एक का शांत होना जरूरी है। लेकिन ये भी ध्यान रखिए , रिश्ते में बातचीत पूरी तरह से बंद करने से समस्या का हल नहीं होगा। इसलिए अपनी ईगो को अलग करके पार्टनर से बात करिए , इससे आपके बीच गलतफहमियां ज्यादा नहीं बढ़ेगी।

………Ayushi shakya

‘ हम ‘ सफर की तलाश….

हम हमेशा ऐसे जीवनसाथी की ख्वाहिश करते हैं जिनकी पसंद – नापसंद और आदतें सब हमसे मेल खाती हो। तभी तो हम उन्हें हमसफ़र कहते हैं। हम चाहते हैं उसमें कुछ ऐसा जरूर हो जिससे लोग कहें ये तो “मेड फॉर ईच अदर” हैं। लेकिन ऐसा बिल्कुल जरूरी नहीं कि आपके “सपनों की रानी” या “ख्वाबों का राजा” एकदम आपकी कल्पना के अनुरूप हो। शायद आप उत्तर हों और वो दक्षिण। अगर आप नरम हों तो वो गरम। वो आपकी कल्पना के इतर भी हो सकता है। अगर आप अपने जैसे की तलाश में लगे रहेंगे तो आप जीवन भर अकेले रह जाएंगे। इसलिए उसे वैसे ही स्वीकार करें जैसा वो है-

ना बदलें एक – दूसरे को-
अपने पार्टनर की आदतों को बदलने की कोशिश बिल्कुल ना करें। लेकिन अगर उनमें कोई बुरी आदत है जिससे उन्हें आगे नुकसान हो सकता है तो उनसे इस बारे में जरूर बात करें। अगर आपका पार्टनर आपसे कोई आदत बदलने को कहे तो उसकी वजह भी जरूर जानें।

संतुलन बना कर रखें-
रिश्ते की गाड़ी तभी आगे बढ सकती है जब दोनों पहिए संतुलित हों। अगर एक गरम मिजाजी है तो दूसरे को शांत स्वभाव रखना होगा। अगर एक चिल्ला रहा है तो दूसरे को सुनना होगा। ताकि छोटी बातों को बढ़ने से बचाया जा सके। लेकिन आपका काम केवल शांत रहना और सुनना नहीं बल्कि पार्टनर को सही बात समझना भी होना चाहिए। ताकि वो गलती करने से बचें।

एक-दूसरे को समय दें-
ये लाज़िमी है कि आप अपने जीवनसाथी के बारे में कुछ भी नहीं जानते होंगे। इसलिए जरूरी है एक – दूसरे के साथ बैठें अपनी आदतों और जीवनशैली के बारे में जाने।लेकिन बात करते समय केवल अपनी बड़ाई ना करें अपने पार्टनर की भी सुने उसकी पसंद भी जाने।

नजरिए का करें सम्मान
अपने पार्टनर के किसी चीज को लेकर जो नजरिया है उस पर उसका सम्मान करें। कभी भी उसके नजरिए को बदलने की कोशिश ना करें क्योंकि ऐसा हो सकता किसी एक विषय पर आप दोनों का नजरिया एक दूसरे से बिल्कुल अलग हो।

स्पेस भी जरूरी
अपने पार्टनर को उसका स्पेस भी दें ताकि वो अपने दोस्तों और परिवार के साथ जुड़ा हुआ महसूस करें। उसे कभी ऐसा ना लगे उसकी जिंदगी आपके दायरों में ही बंध गई है।

——Ayushi shakya———-

समझें प्यार की अहमियत..

कहते हैं कि प्यार एक खूबसूरत तोहफा है। लेकिन नए दौर के साथ इस तोहफे का स्वरूप बदल गया है। आजकल किसी से प्यार करना ब्यूटीफुल फीलिंग नहीं फैशन बनता जा रहा है। जैसे कि नया ट्रेंड आने पर लोग पुराने फैशन को भूल जाते हैं। वैसे ही आजकल लोग अपने रिलेशनशिप के साथ भी कर रहे हैं।

किसी एक पार्टनर के साथ रिश्ता ठीक नहीं चलने या मन भर जाने पर आपके पास ‘मूव ऑन’ करने का विकल्प होता है। इसी मूव ऑन ने रिलेशनशिप की उम्र कम कर दी है।

किसी ऐसे रिश्ते में आगे बढ़ना बिल्कुल ठीक जिसमें कोई एक दूसरे को ना समझे। लेकिन किसी से मन भर जाने पर मूव ऑन करना ये दर्शाता है कि आपको उस व्यक्ति से प्यार नहीं बल्कि आकर्षण था। दरसअल लोग किसी से अट्रैक्शन को प्यार समझने कि गलती कर बैठते हैं। और कभी – कभी अट्रैक्शन का खत्म होना रिलेशनशिप टूटने की वजह भी बन जाता है। और हम “मूव ऑन” को अपनाते हुए दूसरे पार्टनर की तलाश में लग जाते हैं।

अक्सर कॉलेज लाइफ में सबने ये पीयर प्रेशर झेला होगा कि तुम्हारे पास ब्वॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड नहीं है तो तुमने लाइफ ही नहीं जी। इसलिए अधिकतर ये देखा जाता कि खुद को लाइफ enjoyer दिखाने के चक्कर में लोग ज़ल्दबाज़ी में ऐसे पार्टनर का चुनाव करते हैं जिसकी लाइफलाइन बस कॉलेज के लास्ट ईयर तक होती है।

प्यार अपने साथ जहां खुशियां और अपनापन लाता है वहीं यह कुछ जिम्मेदारियां भी लेकर आता है। जो अपनी कॉलेज लाइफ में कोई नहीं उठाना चाहता है।और शायद यही वजह है कि कोई भी रिलेशनशिप लंबा नहीं टिकता।

किसी को दिखाने के लिए किसी से प्यार करने की जल्दबाजी तबतक ना करें जबतक आप प्यार की अहमियत और जिम्मेदारियों को नहीं समझते। और किसी और की देखा देखी में ये बिल्कुल जरूरी नहीं है कि पूरी दुनिया प्यार के नशे में डूबी है तो आपको भी उसमें डूबना ही है। खुद को समय दीजिए प्यार के लिए परिपक्व होने में।

…..Ayushi Shakya……..

Self partnering is hard to digest…

Have you heard about self partnered. No, maybe never, because we are human beings and we have habitual of live in groups. Actually we can’t live alone so everyone wants to a partner to spend the whole life.

Self partnered means relationship with yourself. But it’s not easy to be self partnered. it’s more difficult than being in a relationship.And it’s too difficult for a women being single.Because societal and familial pressure doesn’t live her “spinster”.

When she is in college her peers forced her to have a boyfriend. If she does not a boyfriend, her friends like ” tumne life hi nahi jee”. It’s very ridiculous.

And her family pressure starts with her birth. The Family starts seeking a soul mate for her since her birth .

Why people don’t understand that is not necessary for a girl to be in a relationship when she can live without anyone. If she doesn’t need anyone why pressurised her?

Self love and self partnered terms are the laughing stock for those who have fallen in love with someone…..but it’s more necessary to show your love for yourself rather than to show someone. Because if you can’t show up for yourself, how can you show up for anyone else?

—Ayushi shakya